शुक्रियालॉकडाउन

Shayari
May 2, 2022
रुके ना हम – हारे ना हम
May 2, 2022

Dr Viyatprajna Acharya

शुक्रियालॉकडाउन !
अजीबलगताहैन ,
परयहसचहै —
इतनेसालोंमें
धरतीजैसेसाँसलेरहीअब ,
भागतेभागते
हाँफतेहाँफते
वक्तजैसेठहरगयीहै l

उफ्फ़ ….
सातसेपाँचस्कूल ,
फिरटयूसन
इतवारकोभीभलाकहाँथाचैन ??
घरतोएक
ठहरावथाबस ,
कुछदेररातमें
स्वप्न-बिहीनबिस्तरपे
लेटनेकी I

देखियेन !
कितनेफूलमैंनेबटोरेहैं !
गमलेकेपेड़सहला-सहलाकर
बायोलॉजीपढ़तीहूँअब !
झाँझा (कैटरपिलर ) सेतितली
बननेकासचदेखतीहूँ …
औरअपनेसपनेबुनतीहूँ I

हाँ, मैंनेझाड़ूलगाया ,
घरभीपोछालगाया,
लेकिनपरिवारकाहिस्साबननेमें
बहुतमज़ाभीआया I
मैंनेआटागूंदा
रोटियांसेकीं ,
चाहेथोड़ीटेढ़ीमेढ़ी
गोलचोकौरक्योंनाबनाई I
मेरेकपकेक , मोमो
पापामम्मीकेमनमें
जैसेअमृतबरसाया I

देखियेन !
पीठसेबिसकिलोकाबोझाक्याहटी
मैंदोसेंटीमीटरलम्बीभीहुईहूँ I
थैंक्यूलॉकडाउन !

मुझेपतानथा
मम्मीएककहानीकापिटाराहै ,
चलतीफिरतीमहाभारतरामायणकी
कथाधाराहै I
मैंनेतोबसउन्हेंदौड़ते, भागते , हाँफते
थकेहारे, लेटतेदेखाहै I

इसलॉकडाउनमें
पापाकोभीएक
कलाकारबनतेदेखाहै I
दोस्तोंकेसाथमस्ती
जरूरयादआतीहै,
लेकिनमेरीनटखटबेहेन ,
व्हाट्सप्प , इंस्टाग्राम
कहाँबोरहोनेदेतींहैं ???

शुक्रियालॉकडाउन !
मैंनेआँखेंभरकर
आसमानकोनिहाराहै ,
सुबहशामकीगुलाबीआसमानमें
सपनोंकेरंगोंकोघोलीहूँ;
थोड़ीदेरहीसही
मैंनेअपनीअंदरझांकाहै I

बादलोंकेआकारमें
मुझेकभीजिराफ ,
तोकभीएकराजकुमारदिखाहै l
बाहरजानसकोतो
थोड़ीदेरअंदरझांकतेहैंन !
कितनासुकूनहै —
अपनेसाथएकात्महोना
उसअनंततामेंरमतेजाना
कितनाअच्छालगा
आँखेंमूँदेध्यानलगाना !

सालमेंएकमहीना
जरूरलॉकडाउनहो
हरकोईथोड़ाठहरें
साँसलें ,
अपनीबगलवालीमौसीके
साथदोमीठेबोलबोललें I
अपनीपरिवारकेसाथ
नीचेदरीबिछाकर
थोड़ीलूडो , तासखेललें I

धरतीरुकेगी , सांसलेगी
शान्तिलौटेगी —
तभीसृजनशीलताबढ़ेगी
विज्ञानप्राणोंकेउपकारकरेगी
अर्थनीतिभीदौड़पड़ेगी …
शुक्रियालॉकडाउन !
शुक्रिया, तहेदिलशुक्रिया !
हमेंसहीराहदिखानेकेलिए …..

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